छोटे शहर से हिन्दी के फलक पर बड़ी इमारत

छोटे शहर से हिन्दी के फलक पर एक बड़ी इबारत


वीरेन्द्र आज़म सम्पादक ‘शीतलवाणी’


पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से हिन्दी के फलक पर एक बड़ी इबारत लिखी जा रही है। इबारत लिखने का काम कर रही है सहारनपुर से प्रकाशित हिन्दी की एक साहित्यिक पत्रिका ‘शीतलवाणी’। इस साहित्यिक त्रैमासिक का सफ़र यूँ तो करीब 40 साल पुराना है लेकिन गत 12 वर्षों में ‘शीतलवाणी’ ने साहित्यिक पत्रकारिता में कई नये आयाम स्थापित किये हैं। आइये पहले इसके सफ़र पर एक नज़र डालते हैं। वर्ष 1981 में इसका प्रकाशन एक साप्ताहिक समाचार पत्र के रुप में प्रारंभ किया गया था। लेकिन एक वर्ष बाद 1982 में ही इसे रंगमंच और साहित्य को समर्पित पाक्षिक पत्र बना दिया गया। ‘शीतलवाणी’ के रंगमंच अंक का लोकार्पण प्रख्यात समालोचक, नाट्य समीक्षक व ‘नटरंग’ के संस्थापक संपादक श्री नेमीचंद्र जैन के कर कमलों द्वारा किया गया।


क़रीब तीन वर्ष तक प्रकाशन के बाद कुछ अपरिहार्य कारणों के चलते ‘शीतलवाणी’ का प्रकाशन बंद हो गया। साल 2008 में ‘शीतलवाणी’ का प्रकाशन पुनः प्रारंभ किया गया एक नये संकल्प के साथ। हमारा ‘‘संकल्प था हिन्दी को समृद्ध करने के साथ-साथ नये रचनाकारों को मंच उपलब्ध कराना तथा अहर्निश हिन्दी सेवा में लगे साहित्य साधकों और हाशिए पर चले गए प्रख्यात साहित्यकारों के व्यक्तित्व-कृतित्व को सामने लाते हुए उन पर विशेषाँक प्रकाशित करना। संकल्प के मूल में भाव ये भी था कि इससे साहित्यकारों पर शोध करने वाले शोधार्थियों को एक ही स्थान पर अधिक से अधिक शोध सामग्री उपलब्ध हो। अपने इस उद्देश्य में ‘शीतलवाणी’ काफी सफल भी रही। हालाँकि अपने इस सफ़़र में पत्रिका को अनेक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। ‘शीतलवाणी’ को न तो किसी पूँजीपति का संरक्षण मिला और न कभी किसी सरकारी संस्थान से अनुदान। यदि किसी का सहयोग और विश्वास मिला तो वह थे सहारनपुर के तत्कालीन मंडलायुक्त श्री आर पी शुक्ल ! वे ही थे जिन्होंने हमारा हौसला भी बढ़ाया और अपने सहयोग का हाथ भी। परिणाम !  हम प्रकाशन की पटरी पर  लौट आये। भले ही हम दौड़ न पाये हों लेकिन न रुके हैं न थके है। पाठकों का स्नेह और रचनाकारों का रचनात्मक सहयोग हमारा संबल है और हर अंक हमारी शक्ति का नया केन्द्र । प्रबंध संपादक के रुप में प्रिय मनीष कच्छल का प्रकाशन से पोस्ट तक प्रबंधन और सहायक संपादक के रुप में अनुज सरीखे राजेन्द्र शर्मा (नोएडा) का सहयोग ‘शीतलवाणी’ के प्रकाशन की मुश्किलें आसान करता रहा है।’’


जिन साहित्यकारों पर विशेषाँक प्रकाशित किये गए उनमें शैलियों के शैलीकार पद्मश्री डाॅ.कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, प्रख्यात कवि एवं चित्रकार शमशेर बहादुर सिंह, प्रख्यात भाषाविद् व व्याकरणाचार्य और कामायनी मर्मज्ञ डाॅ.द्वारिका प्रसाद सक्सेना, सुविख्यात रंगकर्मी, कथाकार व उपन्यासकार डाॅ.लक्ष्मी नारायण लाल, जाने-माने आलोचक कमला प्रसाद, चर्चित कवि, कथाकार व पत्रकार उदय प्रकाश,  वरिष्ठ कथाकार व उपन्यासकार से.रा.यात्री, सुविख्यात कवि नरेश सक्सेना, हिन्दी ग़ज़ल के प्रख्यात हस्ताक्षर व हाइकुकार कमलेश भट्ट कमल, संस्मरण लेखक, कवि, चित्रकार व कुशल प्रशासक आर पी शुक्ल शामिल हैं। साल 2008 से प्रारंभ हुआ ये सिलसिला निरंतर जारी है। प्रत्येक विशेषाँक में पत्रिका के सहायक संपादक राजेन्द्र शर्मा द्वारा सुंदर रंगीन चित्र के साथ संबद्ध साहित्यकार का जीवन वृत्त पाठक को तब तक आगे नहीं बढ़ने देता जब तक वह उसे ठीक से देख और पढ़ न लें। जिन साहित्य विभूतियों पर विशेषाँक निकाले गए हैं उन्हें समय-समय पर विभिन्न सात्यिकारों द्वारा जो पत्र लिखे गए, उन पत्रों का प्रकाशन और चित्र वीथिका में दर्शायी गयी उनकी जीवन झाँकी ने ‘शीतलवाणी’ के इन विशेषाँकों को दस्तावेज़ बना दिया है। यही वजह है कि ‘शीतलवाणी’ के इन सभी अंकों को साहित्य जगत का खूब प्यार और दुलार मिला हैं।


नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर पद्मभूषण कुँवर नारायण, गीतों के हिमालय डॉ.गोपाल दास नीरज, गीत ऋषि बाल कवि बैरागी, सबसे बडे़ उपन्यास के रचयिता मनु शर्मा, बाल साहित्य के वरिष्ठ रचनाकार कृष्ण शलभ आदि शब्द शिल्पियों के महाप्रयाण पर भी विशेष आलेख और सामग्री ‘शीतलवाणी’ के अंकों की विशेषता रही है। इसके अतिरिक्त देश के अनेक स्थापित व चर्चित रचनाकारों के साथ-साथ ‘शीतलवाणी’ में नये हस्ताक्षरों की कहानियाँ, संस्मरण, गीत, कविताएँ, नयी कविता, मुक्तक, ग़ज़ल, दोहे, हाइकु आदि हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं को बडे़ सम्मान के साथ स्थान दिया गया है। पुस्तक व पत्रिकाओं की समीक्षा और साहित्यिक गतिविधियां पत्रिका के स्थायी स्तंभ हैं। शीतलवाणी के संपादन पर कीर्तिशेष गीतऋषि गोपालदास नीरज दे लेकर डा.गंगा प्रसाद विमल तक देश के असंख्य साहित्यकारों की शाबाशी और शुभकामनाएं मुझे मिली हैं और यही मेरी ऊर्जा भी है और आगे बढ़ने का संबल भी ।